सुप्रीम कोर्ट के आरक्षण पर दिए गए फैसले को निरस्त करने की भारतीय बौद्ध महासभा ने की मांग

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बरेली। आरक्षण पर दिये गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का दलित समाज के लोगों ने अपना विरोध शुरू कर दिया है। इस संबंध में आज कलेक्ट्रेट पर भारतीय बौद्ध महासभा ने आरक्षण पर सप्रीमकोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए राष्ट्रपति को ज्ञापन भेजकर इस फैसले को निरस्त करने की मांग की है।

भारतीय बौद्ध महासभा उत्तर प्रदेश ने ज्ञापन पत्र के माध्यम से माँग करते हुए कहा की परम पूज्य बाबा साहब डा भीमराव अम्बेडकर द्वारा भारत की अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों को प्रदत्त संवैधानिक अधिकारों- ‘आरक्षण’ पर कुठाराघात करते हुए माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजातियों में केमीलेयर एवं जातीय उपवर्गीकरण कर आरक्षण व्यवस्था करने का दिनांक 1 अगस्त 2024 को फैसला दिया है। भारतीय संविधान की मूल भावना एवं भारतीय संविधान के अनुच्छेद-341 एवं 16 (4) के विरूद्ध है। माननीय सुप्रीम कोर्ट को अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जन जातियों के पूर्व प्रदत्त आरक्षण में एडिशन डिलीशन एवं मोडिफिकेशन का संविधान प्रदत्त कोई अधिकार भी नहीं है। “संविधान में आरक्षण की व्यवस्था सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए की गई है, जबकि अभी भी एससी, एसटी०व आदिवासियों से छुआछूत, ऊँचनीच, जाति भेद, भेदभाव, का दुर्व्यवहार किया जाता है। 1 अगस्त 2024 को अनुसूचित जातियों / अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण के विरूद्ध कीमीलेयर एवं जातीय उपवर्गीयकरण सम्बन्धी माननीय सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है, उससे भारतीय बौद्ध महासभा उत्तर प्रदेश (पंजीकत) सहित लाखों संगठन एवं करोड़ों लोग भयंकर जनाक्रोश में हैं, जो भारत बन्द जैसे आन्दोलनों की ओर अग्रसर हैं। ज्ञापन देने बालो में हरिपाल सिंह , ओमकार सिंह , रमेश बाबू गौतम , ओमप्रकाश बौद्ध, राकेश बाबू , राजेश गौतम आदि मोजूद रहे।

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