उर्स-ए-शाह शराफ़त कुल शरीफ की रस्म के साथ समाप्त , शहर में उमड़ा ज़ायरीन का सैलाब

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बरेली। रविवार को  सूफ़ी बुज़ुर्ग हज़रत शाह शराफ़त मियाँ के 57वें उर्स का आज शानदार समापन हुआ। इस मौके पर शहर में ज़ायरीन की भारी भीड़ देखी गई, जिससे यातायात कई घंटे प्रभावित रहा।उर्स के आख़िरी  दिन की शुरुआत सुबह 8 बजे मेहमान ख़ाने में तकरीरी प्रोग्राम से हुई। इसमें बरेली और आसपास के इलाकों से आए उलमा-ए-किराम ने हिस्सा लिया। अल्लामा शाहिद शैख़, प्रोफेसर महमूद उल हसन, मौलाना मुफ्ती फहीम सकलैनी और मौलाना अबसार सक़लैनी, मौलाना नूर मोहम्मद जैसे उल्मा ने क़ौम को आपस में इत्तिहाद, मोहब्बत, भाई-चारे के साथ रहने की हिदायत की साथ ही तालीम पर बहुत ज़ोर दिया उन्होंने कहा अपने बच्चो को दुन्यवी तालीम के साथ-साथ दीनी तालीम भी दिलाएं साथ ही साहिबे उर्स हज़रत शाह शराफ़त मियाँ की पाकीज़ा जिंदगी और उनकी शिक्षाओं पर रोशनी डाली।
ठीक 11 बजे अपने मुकरर्र वक्त पर कुल शरीफ़ की रस्म अदा की गई ।कुल शरीफ़ के मौक़े पर “सज्जादा नशीन हज़रत गाज़ी मियां हुज़ूर ने मुल्क व शहर के अमन-चैन, तरक्की के लिए दुआएं कीं और साथ ही उर्स-ए-सकलैनी का ऐलान किया ।उन्होंने बताया कि हज़रत पीरो मुरशिद शाह सकलैन मियां हुज़ूर का इस साल पहला उर्स दिनांक 5 अक्टूबर से 9 अक्टूबर तक मनाया जायेगा, उर्स शरीफ़ में उन्होंने ज़्यादा से ज़्यादा तादाद में लोगों को आने की दावत भी दी।मंच से ऐलान बताया गया कि उर्स ए सकलैनी के मौके पर हज़रत शाह सकलैन एकेडमी की जानिब से 3 अक्टूबर को बिशप मंडल इंटर कॉलेज मैदान में “इज्तिमाई निकाह” सामूहिक विवाह का प्रोग्राम किया जायेगा।
उर्स ख़त्म  होने पर पूरे देश से आए ज़ायरीन की से  शहर की सड़कों पर जाम लगा गया । इस मौके पर बाज़ारों में भी भारी भीड़ देखी गई। स्थानीय दुकानदारों के साथ-साथ दूर-दराज से आए व्यापारियों को भी अच्छा फायदा हुआ।
यह सालाना जश्न एक बार फिर बरेली की सूफी परंपरा और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक बनकर उभरा। उर्स-ए-शाह शराफ़त ने न सिर्फ मज़हबी तौर पर, बल्कि सामाजिक मेल-मिलाप और एकता के लिहाज़ से भी अपनी अहमियत साबित की।कुल शरीफ़ के मौक़े पर स्टेज पर खुसूसी तौर पर हज़रत मुंतखब मियां, हज़रत सादकैन सकलैनी, हाफ़िज़ गुलाम गौस, हमज़ा सकलैनी, मुर्तुजा सकलैनी, मुंतसिब सकलैनी, इंतिखाब सकलैनी, सलमान सकलैनी, मुनीफ सकलैनी, फैजयाब सकलैनी, असदक सकलैनी, शाहिद शेख़, हाजी लतीफ़ आदि मौजूद रहे।

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