ग्रीष्मकालीन साठा धान के स्थान पर कम पानी वाली दलहनी फसलों संकर, मक्का एवं सब्जी आदि की खेती करें 

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बरेली। उप कृषि निदेशक ने समस्त कृषक भाइयों को अवगत कराया है कि मा0 उच्च न्यायालय एवं मा0 राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण नई दिल्ली द्वारा दिये गये आदेशों के अन्तर्गत पराली जलाने की घटनाओं पर पूर्णतया रोक लगाये जाने के निर्देश दिये गये हैं। जनपद बरेली में कुछ कृषकों द्वारा माह जनवरी में धान की नर्सरी डालकर ग्रीष्मकालीन साठा धान की खेती की जाती है, जिसके कारण पराली जलाने की घटनाओं में वृद्धि होती है। साठा धान की फसल में हर चौथे-पांचवें दिन सिंचाई होने से अत्यधिक पानी की आवश्यकता होती है, जिससे भूमि से अत्याधिक जल का दोहन होता है। वर्तमान में भूमिगत जल का दोहन अधिक होने से भू-गर्भ जल स्तर लगातार नीचे गिरता जा रहा है। साठा धान की खेती से भूगर्भ जल का अत्यधिक दोहन होने से जलस्तर में गिरावट का भी यह एक कारण है तथा पेयजल के संकट से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। इन्हीं कारणां से कुछ प्रदेशों में साठा धान की खेती को प्रतिबन्धित किया गया है। भूगर्भ जलस्तर के लगातार गिरने एवं पर्यावरण रोकने तथा खरीफ की फसलों में कीट व रोगों के प्रभाव को कम करने एवं भूमि की संरचना को विकृत होने से बचाव हेतु साठा धान की खेती पर्यावरण के अनुकूल नहीं है।उन्होंने कहा कि साठा धान की फसल के स्थान पर तरबूज, खरबूज, खीरा, ककड़ी एवं अन्य ग्रीष्मकालीन सब्जियों के साथ दलहनी फसलों यथा उर्द, मूंग की खेती कम लागत में करके अधिक लाभ लें सकते हैं। साठा धान के लगाने से भूगर्भ जल स्तर एवं पर्यावरण पर पडने वाले दुष्प्रभावों के दृष्टिगत साठा धान की खेती जनपद में प्रतिबंधित की गई है।जिलाधिकारी द्वारा जनपद में ग्रीष्मकालीन साठा धान की रोपाई रोकने हेतु समस्त सम्बन्धित अधिकारियां को अधीनस्थ क्षेत्रीय कर्मचारियों की डयूटी लगाकर व्यापक प्रचार- प्रसार कराने के साथ-साथ कृषकों को साठा धान के स्थान पर कम पानी वाली दलहनी फसलों ग्रीष्मकालीन संकर, मक्का एवं सब्जी की खेती उगाने हेतु प्रोत्साहित करने हेतु निर्देशित किया गया है।  अतः सभी कृषक भाइयों से अपील है कि ग्रीष्मकालीन साठा धान के स्थान पर कम पानी वाली दलहनी फसलों ग्रीष्मकालीन संकर, मक्का एवं सब्जी आदि की खेती करें ताकि भूगर्भ जल स्तर बना रहें।

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